सात चक्र SEVEN CHAKRAS
THE MYSTEREOUS POWERS IN HUMAN
YOGA AND MOKSHA
हमारे शरीर में सात चक्र है, जिनसे अलग अलग शक्तियां जुड़ी हुई है। इन चक्रों से शरीर के अलग अलग कार्य भी सम्बंधिन है, इन चक्रों से ही अलग अलग बीमारियां बी सम्बंधिन है, हम इन चक्रों को शुद्ध करके इनसे जुड़ी हुई बिमारियों को ठीक कर सकते है. हमारे शरीर में एक कुंडली शक्ति है जो मूलाधार चक्र के नीचे सुप्त अवस्था में है और वह शक्ति अधोमुखी है। जब यह शक्ति जागरित अवस्था में आती है तो कुंडलिनी शक्ति उधर्व मुखी होकर इन सातों चक्रों को भेदती हुई ऊपर की तरफ चलने लगाती है, जैसे जैसे कुंडलिनी चक्रो को भेदती हुई ऊपर की तरफ गमन करती है तो जिस भी चक्र को भेदती है वह चक्र जागृत हो जाता है और उस से सम्बंधित शक्तिया साधक को प्राप्त हो जाती है।
कुंडलिनी की यह यात्रा सातवे चक्र पर जाकर समाप्त होती जोकि ब्रह्मरन्ध्रा चक्र है जब यह चक्र जागृत हो जाता है तो साधक शिव रूप हो जाता है वह स्वयं ब्रह्म हो जाता है
जैसा की भगवन बूढ़ा ने कहा था जब वह स्मति से जागे थे तो सबसे पहले उनके मुख से यह वाक्य निकला था "अहम् ब्रह्म अस्मि "
कुंडलिनी की यह यात्रा बहुत कठिन है जब साधक विशुद्धि चक्र को जाग्रत करता है तो वह एक ऐसी आनंदमयी अवस्था में पहुँच जाता है जहां से आगे जाने को उसका मन नहीं करता जैसे की कोई किसी मनोरम स्थान पर जाकर खुद को ही भूल जाये। इसे तुरिया अवस्था कहते हैं। यहाँ पर पहुँच जाने के बाद साधक को चैतन्य रहना पड़ता है और उसे इस यात्रा को जारी रखना होगा अन्यथा साधक यहीं पर भटक जाता है और वह पूर्ण ब्रह्म को प्राप्त नहीं होता। यह यात्रा तभी पूर्ण होगी जब साधक सातवे चक्र "सहस्रार चक्र " को जाग्रत कर लेगा।ये सात चक्र जैसा की चित्र में दिखाया गया है।
सात चक्रों का नाम तत्व
१. मूलाधार चक्र पृथ्वी
२. स्वाधिस्ठान चक्र जल
३. मणिपुर चक्र अग्नि
४. अनहत चक्र वायु
५. विशुद्धि चक्र आकाश
६. आज्ञा चक्र सभी चक्रों का नियंत्रक
७. ब्रह्मरन्ध्र चक्र या सहस्रार चक्र
हमारे शरीर में इन चक्रो की स्थिति
सातों चक्रों में से पांच चक्र ऱीढ़ की हड्डी पर स्थित
इसी विषय को जारी रखते हुए मैं ये भी बताऊंगा की कोई भी कैसे इन चक्रो को जाग्रत कर सकता है
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